Friday, May 17 2024

मुजफ्फरपुर में भी रहते हैं गांधी परिवार

FIRSTLOOK BIHAR 23:27 PM बिहार

मुजफ्फरपुर में भी रहता है एक गांधी परिवार। यह बात मुजफ्फरपुर के लोगों को नहीं मालूम था। कई दशक तक खादी जगत के लोग भी नहीं जान सके।समस्तीपुर के एडीएम रंगनाथ चौधरी को जब समस्तीपुर के कोषागार से कुछ प्रामाणिक दस्तावेज हाथ लगे तो उन्होंने इस परिवार को मुजफ्फरपुर में ढूंढ़वाना शुरू किया। मुजफ्फरपुर खादी ग्रामोग से संपर्क साधा गया।काफी प्रयास के बाद इस परिवार से संपर्क हुआ।

बाबू लक्ष्मीनारायण को बिहार का गांधी कहा जाता है। 1920 के दशक में जब महात्मा गांधी ने भारत के सात लाख गांवों में चरखा चलाने का अभियान शुरू किया तब अखिल भारत चरखा संघ की स्थापना कर जिन दो कंधों को बिहार में सबसे उपयुक्त और जवाबदेह माना वे थे राजेंद्र बाबू और बाबू लक्ष्मीनारायण।दोनों अंतर्मुखी, प्रतिभावान और दधीचि की तरह महर्षि। राजेंद्र बाबू को महात्मा गांधी ने बिहार का एजेंट एवं बाबू लक्ष्मीनारायण को मंत्री बनाया गया।स्वतंत्रता आंदोलन में जेल जाने के साथ साथ खादी आंदोलन को बिहार के गांव गांव में दोनों महापुरुषों ने घर घर चरखा चालू कर अंग्रेजी सरकार की चूल हिलाई।

1934 के भूकंप में उत्तर बिहार बूरी तरह प्रभावित हुआ।हजारों परिवार मलबे में दब गए।बाबू लक्ष्मीनारायण के परिवार में उनकी पत्नी एक बेटे और बेटी के साथ आठ लोग मलबे में दब कर मर गए।लक्ष्मी बाबू उस समय बेगूसराय में थे। इतनी बड़ी दिल दहला देनेवाली घटना के बाद भी लक्ष्मी बाबू अपने घर न आकर सीधे मुंगेर यह कह कर चले गए कि मुंगेर में ज्यादा जाने गईं हैं,मुझे वहां जाना चाहिए। वे मुंगेर के लोगों के राहत के लिए गए और उनके घर पर महात्मा गांधी और पंडित जवाहरलाल नेहरू पहुंच गए। गांधी ने उनके घर आकर पत्र भेजा कि मुंगेर और साथी संभाल लेंगे, आप अपने घर आइए।

लक्ष्मी बाबू जब मुजफ्फरपुर आए तो सबसे पहले अपने घर न आकर अन्य जगह मलबों को देखा, मुजफ्फरपुर वासियों के आंखों के आंसू पोछे तब अपने घर गए।

स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात जब सरकार में जवाबदेही लेने की बात आई तब राजेंद्र बाबू राष्ट्रपति बनाए गए। लक्ष्मी बाबू ने खुद को रचनात्मक कार्यों में ही लगे रखना उचित समझा। बाद के दिनों में विनोबा जी से मंत्रणा कर भूदान में निकल पड़े। अकेले बिहार से पूरे भारत की तुलना में आधा से अधिक लगभग 23 24 लाख एकड़ जमीन भूदान में प्राप्त हुआ।

इसी क्रम में पदयात्रा के दौरान 1950 के दशक में इनकी मृत्यु बिहार के रोसड़ा में हो गई। लक्ष्मी बाबू कहते थे,कि लोग कहते हैं करते करते मरो,मैं कहता हूँ मरते मरते करो....जैसा कहा ठीक वैसा ही हुआ।लक्ष्मी बाबू मरते मरते तक पदयात्रा करते हुए बेघरों के अपने घर हों,इसका इंतजाम करते रहे।

लक्ष्मी बाबू को बिहार के गांधी की उपाधि दी गई। बिहार के गांधी की बहू एवं उनके पौत्र बाबू अजय नारायण से शिष्टाचार मुलाकात एवं आशीर्वाद लेने का बिहार खादी ग्रामोद्योग संघ के अध्यक्ष अभय चौधरी एवं खगड़िया जिला खादी ग्रामोद्योग संघ के मंत्री निताई कुमार के साथ मेरा भी सौभाग्य हुआ।माताजी ने अध्यक्ष जी को खादी के सूत की माला पहना,माथे पर तिलक लगाकर राजेंद्र बाबू, लक्ष्मी बाबू के कार्यों को आगे बढ़ाने एवं महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज के सपने को साकार करने के लिए बिहार खादी ग्रामोद्योग संघ को फिर से जिंदा करने का आशीर्वाद दिया।

यह वैष्णव परिवार आज भी बिना कोई दावा और दंभ के सादगी पूर्वक मुजफ्फरपुर के पुरानी बाजार में रहता है। यह परिवार आज भी आत्म प्रचार से परे है।यही कारण है कि बहुत कम लोग बिहार के इस गांधी और इस वैष्णव परिवार को जानते हैं। कुंदन कुमार कार्यकर्ता बिहार खादी ग्रामोद्योग संघ।

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