Friday, May 17 2024

खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) ने मधुमक्खियों का उपयोग करके हाथियों तथा मनुष्यों के बीच टकराव को रोकने के लिए री-हैब परियोजना की शुरुआत की

FIRSTLOOK BIHAR 08:56 AM खास खबर

नई दिल्ली : हाथियों के एक झुंड की कल्पना करें, जो सबसे बड़ा जानवर होता हैऔर समान रूप से बुद्धिमान भी, उन्हें शहद वाली छोटी-छोटी मधुमक्खियों के द्वारा मानव बस्ती से दूर भगाया जा रहा है। इसे अतिशयोक्ति कहा जा सकता है, लेकिन, यह कर्नाटक के जंगलों की एक वास्तविकता है।

खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) ने देश में मानव-हाथी टकरावको कम करने के लिए मधुमक्खी-बाड़ बनाने की एक अनूठी परियोजना सोमवार कोशुरू की। प्रोजेक्ट री-हैब (मधुमक्खियों के माध्यम से हाथी-मानव हमलों को कम करनेकी परियोजना) का उद्देश्य शहद वाली मधुमक्खियों का उपयोग करके मानव बस्तियों में हाथियोंके हमलों को विफल करना है और इस प्रकार से मनुष्य व हाथी दोनों के जीवन की हानि कोकम से कम करना है। खादी और ग्रामोद्योग आयोग के अध्यक्ष श्री विनय कुमार सक्सेना द्वारा 15 मार्च, 2021 को कर्नाटक के कोडागु जिले के चेलूर गांव के आसपास चार स्थानों पर पायलटप्रोजेक्ट शुरू किया गया। ये सभी स्थान नागरहोल नेशनल पार्क और टाइगर रिजर्व के बाहरीइलाकों में स्थित हैं और मानव-हाथी टकरावको रोकने के लिए कार्यरत है। री-हैब परियोजनाकी कुल लागत सिर्फ 15 लाख रुपये है।

प्रोजेक्ट री-हैब केवीआईसी के राष्ट्रीय शहद मिशन के तहत एक उप-मिशनहै। चूंकि शहद मिशन मधुवाटिका स्थापित करके मधुमक्खियों की संख्या बढ़ाने, शहद उत्पादनऔर मधुमक्खी पालकों की आय बढ़ाने का एक कार्यक्रम है, तो प्रोजेक्ट री-हैब हाथियोंके हमले को रोकने के लिए मधुमक्खी के बक्से को बाड़ के रूप में उपयोग करता है।

केवीआईसी ने हाथियों के प्रवेश मार्ग को मानवीय आवासों के लिए अवरुद्धकरने में हाथी-मानव संघर्ष क्षेत्रों के मार्ग के सभी चार स्थानों में से प्रत्येकजगह पर मधुमक्खियों के 15-20 बॉक्स स्थापित किए हैं। बक्से एक तार के साथ जुड़े हुएहैं ताकि जब हाथी गुजरने का प्रयास करें, तब एक टग या पुल हाथी के झुंड को आगे बढ़नेसे रोक दे। मधुमक्खी के बक्से को जमीन पर रखा गया है और साथ ही हाथियों के मार्ग कोअवरुद्ध करने के लिए पेड़ों से लटकाया गया है। हाथियों पर मधुमक्खियों के प्रभाव औरइन क्षेत्रों में उनके व्यवहार को रिकॉर्ड करने के लिए रणनीतिक बिंदुओं पर किसी निष्कर्षपर पहुंचने के लिए नाइट विजन कैमरे लगाए गए हैं।

केवीआईसी के अध्यक्ष श्री सक्सेना ने मानव-हाथी टकराव को रोकने केलिए एक स्थायी संकल्प के रूप में इसे एक अनोखी पहल बताया और कहा कि यह समस्या देश केकई हिस्सों में आम बात है। उन्होंने कहा कि यह वैज्ञानिक रूप से भी माना गया है कि हाथी, मधुमक्खियों से घबराते हैं और वे मधुमक्खियों से डरते भी हैं। हाथियों को डररहता है कि, मधुमक्खी के झुंड सूंड और आंखों के उनके संवेदनशील अंदरुनी हिस्से को काटसकते हैं। मधुमक्खियों का सामूहिक झुंड हाथियों को परेशान करता है और यह उन्हें वापसचले जाने के लिए मजबूर करता है। हाथी, जो सबसे बुद्धिमान जानवर होते हैं और लंबे समयतक अपनी याददाश्त में इन बातों को बनाए रखते हैं, वे सभी उन जगहों पर लौटने से बचतेहैं जहां उन्होंने मधुमक्खियों का सामना किया होता है। श्री सक्सेना ने यह भी कहा कि प्रोजेक्ट री-हैब का सबसे बड़ा फायदा यह है कि यह हाथियों को कोई नुकसान पहुंचाए बिना ही उन्हें वापस लौटने को मजबूर करता है। इसके अलावा, यह गड्ढों को खोदने या बाड़ को खड़ा करने जैसे कई अन्य उपायों की तुलना में बेहद प्रभावी है।

भारत में हाथी के हमलों के कारण हर साल लगभग 500 लोग मारे जाते हैं। यह देश भर में बड़ी बिल्लियों की वजह से हुए घातक हमलों से लगभग 10 गुना अधिक है। 2015 से 2020 तक, हाथियों के हमलों में लगभग 2500 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। इसमें से अकेले कर्नाटक में लगभग 170 मानवीय मौतें हुई हैं। इसके विपरीत, इस संख्या का लगभग पांचवां हिस्सा, यानी पिछले 5 वर्षों में मनुष्यों द्वारा प्रतिशोध में लगभग 500 हाथियों की भी मौत हो चुकी है।

इससे पहले, केवीआईसी की एक इकाई केंद्रीय मधुमक्खी अनुसंधान एवंप्रशिक्षण संस्थान पुणे ने हाथियों के हमलों को कम करने के लिए महाराष्ट्र में मधुमक्खी-बाड़ बनाने के क्षेत्रीय परीक्षण किए थे। हालांकि, यह पहली बार है कि खादी और ग्रामोद्योग आयोग ने इस परियोजना को समग्रता में लॉन्च किया है। केवीआईसी ने परियोजना के प्रभाव मूल्यांकन के लिए कृषि और बागवानी विज्ञान विश्वविद्यालय, पोन्नमपेटके कॉलेज ऑफ फॉरेस्ट्री की सहायता ली है। इस अवसर पर केवीआईसी के मुख्य सलाहकार (रणनीतिऔर सतत विकास) डॉ. आर सुदर्शन और कॉलेज ऑफ फॉरेस्ट्री के डीन डॉ. सीजी कुशालप्पा उपस्थितथे।

हाथियों के कारण हुई मानव मौतें

वर्ष मृत्यु
2014-15 418
2015-16 469
2016-17 516
2017-18 506
2018-19 452
कुल 2361

मनुष्यों की राज्य-वार मौतें (2014-15 से 2018-19)

राज्य मृत्यु
पश्चिम बंगाल 403
ओडिशा 397
झारखंड 349
असम 332
छत्तीसगढ़ 289
कर्नाटक 170

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