कहा, मंत्री की नहीं सुनते अधिकारी
पटना : बिहार के नीतीश सरकार में नौकरशाही हावी है। कार्यकर्ता व विधायकों की तो बात छोड़ दीजिए, मंत्री की बात तक उनके विभाग के सचिव व प्रधान सचिव नहीं मानते हैं। बिहार में हाबी नौकरशाही के सामने मंत्री भी बिवस दिख रहे हैं । जिसके कारण अति पिछड़ी जाति से आनेवाले बिहार सरकार के समाज कल्याण मंत्री मदन सहनी ने इस्तीफा दे दिया है।
हमारे विभाग के अधिकारी हमारी बात नहीं मानते , आदेश की उड़ाते हैं धज्जियां
समाज कल्याण मंत्री मदन सहनी ने मीडिया के सामने साफ तौर पर कहा कि हमारे विभाग के अधिकारी की मनमानी चलती है। वे हमारी बात को नहीं मानते हैं। इस सरकार में मंत्रियों का कोई महत्व व पूछ नहीं है। मंत्रियों के आदेश का कोई मतलब नहीं है।अधिकारी मंत्री के आदेश की धज्जी उड़ाते हैं। मंत्री मदन सहनी ने मंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद काफी दुखी मन से मीडिया के सामने अपनी पीड़ा को रखते हुए कहा कि कमजोर तबका के होने की वजह से उन्हें सताया जा रहा है।
मंत्री ने कहा, इस्तीफा के अलावे कोई चारा नहीं था
मंत्री मदन सहनी ने कहा कि विभाग में लंबे समय से जमे अधिकारियों को हटाना जरूरी हो गया है। हम गंदगी को दूर करना चाहते हैं, लेकिन हमारी कोई सुन नहीं रहा। बताया जाता है कि मंत्री की जब सारी कोशिशें नाकाम हो गयी तब वे अपने पटना स्थित आवास पर मीडिया कर्मियों को बुलाकर अपनी पीड़ा को साझा किया। मीडिया से बातचीत करते हुए मंत्री ने कहा कि समाज कल्याण विभाग के अपर मुख्य सचिव अतुल प्रसाद की मनमानी के कारण विभाग चौपट हो गया है। वे चार सालों से जमे हैं पर आजतक क्या किया? हमारे पास इस्तीफे के अलावा कोई चारा नहीं बचा । हमने मुख्यमंत्री को अपना इस्तीफा भेज दिया है। मंत्री ने कहा कि अफसर मनमानी करते हैं। अफसरशाही से वे तंग आ चुके हैं।
किसी को ब्लैकमेल करने के लिए नहीं, सिस्टम के खिलाफ दिया है इस्तीफा
मंत्री श्री सहनी ने कहा कि मंत्री पद व बंगला मिल जाने से जनता का काम नहीं होगा। वे किसी को ब्लैकमेल करने के लिए इस्तीफा नहीं दिये हैं, वे वर्तमान सिस्टम के खिलाफ इस्तीफा दिये हैं। अति पिछड़े वर्ग व जदयू से आनेवाले समाज कल्याण मंत्री के इस्तीफे के बाद अब निर्णय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को लेना है।
निर्णय मुख्यमंत्री के हाथ में, साथ मंत्री का देते हैं या नौकरशाहों का
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के अगले कदम पर ही सबकी निगाहें टिकी हुई है कि वे अफसरशाही या फिर मंत्री किसका साथ देते हैं। मदन सहनी के इस्तीफे के बाद राजनीतिक चर्चा काफी तेज हो गयी। जदयू व भाजपा के साथ ही विरोधी खेमों में भी यह मामला चर्चा का विषय बना हुआ है।