Friday, May 17 2024

विदेशी विद्वानों ने भारतीय ज्ञान का अनुकरण कर ख्याति प्राप्त किया: प्रोफेसर दास

FIRSTLOOK BIHAR 23:14 PM शिक्षा

टिकारी : राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 की संरचना भारतीय ज्ञान व्यवस्था, भाषा, कला और संस्कृति का संवाहक है और इसके गुणकारी आयाम हैं। इस शिक्षा नीति को देश की शिक्षा व्यवस्था में अपनाकर हम अपने प्राचीनतम संस्कृति के पुनरावृत्ति के साथ शिक्षा के आधुनिक आयामों को भी सफलतापूर्वक प्राप्त कर सकते हैं। ये वक्तव्य बिहार राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग के सदस्य प्रोफेसर विजय कांत दास ने दक्षिण बिहार केन्द्रीय विश्वविद्यालय मीडिया विभाग के द्वारा एनईपी  श्रृंखला में आयोजित वेबिनार को मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित करते हुए कही। विवि ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति के एक वर्ष पूरा होने पर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) से मिले दिशा-निर्देश के अनुसार आयोजित व्याख्यान श्रृंखला के अंतर्गत इस वेबिनार का आयोजन किया।

ज्ञान की सभी शाखाओं की उत्पत्ति का केंद्र बिंदु भारत है

प्रोफेसर दास ने कहा कि ज्ञान की सभी शाखाओं की उत्पत्ति का केंद्र बिंदु भारत है तथा सभी शाखाओं के पिता सप्तर्षी को माना जाता है। सप्तर्षी में कश्यप,जमदग्नि, गौतम, भारद्वाज, विश्वामित्र, वशिष्ठ और अत्री शामिल है। उन्होंने कहा कि विदेशी विद्वानों ने भारतीय ज्ञान व्यवस्था का अनुकरण कर अपने विषय में ख्याति प्राप्त किया है। भारतीय ज्ञान व्यवस्था, भाषा, कला और संस्कृति विषय पर बोलते हुए अपने व्याख्यान में प्रोफेसर दास ने विषय के सभी भाग क्रमशः ज्ञान व्यवस्था, भाषा, कला और संस्कृति पर अलग-अलग सारगर्भित वक्तव्य दिया।

विशिष्ट अतिथि वक्ता के रूप में डॉ. मानस्विनी एम योगी, विशेष कार्य अधिकारी दिल्ली स्कूल ऑफ जर्नलिज्म ने कहा कि भारतीय ज्ञान व्यवस्था पूरी दुनिया में समृद्ध रही है। हमारे प्रोफेसरों को बच्चों के बीच जब उदाहरण देना हो तो अपने भारतीय समृद्ध विद्वत दार्शनिकों का उदाहरण देना चाहिए ना कि विदेशी दार्शनिकों का। उन्होंने सभी भारतीयों को मूल कृति पढ़ने की अपील की क्योंकि अनुवादित कृति अपभ्रंश होती है। उन्होंने कहा है कि परंपरा को लेकर आधुनिकता को ग्रहण करने पर भारतीय शिक्षा नीति जोर देती है जो हमारी असल पहचान है।

कार्यक्रम की शुरुआत में वेबिनार के संयोजक प्रोफेसर आतिश पाराशर ने विषय प्रवेश और राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन को लेकर अपने विचार को साझा किया। मुख्य वक्ताओं के साथ-साथ उन्होंने सभी प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए सबसे पहले डॉ० सुधांशु कुमार झा को  विषय पर बोलने के लिए आमंत्रित किया। अतिथि वक्ता के रूप में डॉ० सुधांशु कुमार झा, अध्यक्ष, ऐतिहासिक अध्ययन एवं पुरातत्व केंद्र सीयूएसबी ने  विषय पर प्रकाश डालते हुए कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति ही वह माध्यम है जो प्राचीन भारत और आधुनिक भारत को एक सूत्र में बांधने का काम करेगी। उन्होंने पारंपरिक ज्ञान व्यवस्था पर ज़ोर देते हुए कहा कि यही हमारी भारतीयता की पहचान है। डॉ० झा ने आधुनिकता का अर्थ साफ शब्दों में वर्णन करते हुए कहा कि पश्चिमी सभ्यता का अनुकरण आधुनिकता कतई नहीं है, बल्कि आधुनिकता का अर्थ वैज्ञानिकता है।

वेबिनार को मीडिया विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर आतिश पराशर के मार्गदर्शन में आयोजित किया गया और इसे सफल बनाने में अन्य प्राध्यापकों डॉ० किंशुक पाठक, डॉ० सुजीत कुमार, डॉ० अनिंद्य देब, डॉ० रवि सूर्यवंशी एवं नूर इमाम आदि ने अहम भूमिका निभाई। वेबीनार के अंत में डॉ० सुजीत कुमार, सहायक प्रोफेसर, मीडिया अध्ययन विभाग ने वेबिनार में जुड़े वक्ताओं, प्रतिभागियों के रूप में मौजूद प्राध्यापकों, शोधार्थियों एवं छात्रों को धन्यवाद ज्ञापित किया।

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