मुजफ्फरपुर वन प्रमंडल के पशु चिकित्सक राजीव रंजन के प्रस्ताव पर सरकार की मुहर
मुजफ्फरपुर : वर्षों से जंगली जानवर का आतंक बिहार के सभी जिलों में है. जो किसानों की फसलों को बर्बाद करने के साथ ही लोगों पर जानलेवा हमला कर दे रहा है. खासकर घोड़परास, सूअर व बंदर फसलों को काफी नुकसान पहुंचा रहा है. इससे निदान को लेकर काफी दिनों से मंथन जारी है. इसी मंथन के तहत पिछले 25 अगस्त को बिहार सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्री नीरज कुमार ने वन विभाग के अधिकारियों व पशु चिकित्सकों के साथ वर्चुअल बैठक की. एक - एक कर अधिकारियों व पशु चिकित्सकों ने अपना पक्ष रखा. मुजफ्फरपुर वन प्रमंडल के पशु चिकित्सक राजीव रंजन के नसबंदी के प्रस्ताव पर मंत्री ने मुहर लगा दी और उन्हें प्रोजेक्ट तैयार कर भेजने का निर्देश दिया. इसकी शुरूआत मोतीपुर से नर घोड़परास की नसबंदी से शुरू की जायेगी. बंदर की नसबंदी बाद में होगी.
मोतीपुर में प्रोजेक्ट सफल होने के बाद पूरे बिहार में होगी लागू
मोतीपुर में इस पायलट प्रोजेक्ट की शुरूआत की जायेगी. नसबंदी से घोड़परास की जनसंख्या में कमी आती है और यह प्रोजेक्ट सफल होता है तो पूरे बिहार में लागू करते हुये मेल घोड़परास की नसबंदी की जायेगी. डाॅ राजीव रंजन ने बताया कि मंत्री के आदेश के बाद प्रोजेक्ट तैयार करने में जुटे हुए हैं. हर हाल में बुधवार तक प्रोजेक्ट तैयार कर भेज देंगे.
एक घोड़परास की नसबंदी पर आयेंगे करीब पांच हजार रुपये का खर्च
डाॅ राजीव रंजन ने बताया कि एक घोड़परास की नसबंदी पर करीब पांच हजार रुपये तक खर्च आयेगा. नसबंदी करने के लिये दूर से ही ट्रंकुलाइजर गन से इंजेक्शन देकर बेहोश करना होगा. मेल घोड़परास को दूर से पहचानने के लिये दूरबीन से देखा जायेगा. इसकी दवा की कीमत 14 सौ से दो हजार रुपये तक है. निडिल की कीमत 800 रुपया पड़ता है. ऑपरेशन के बाद उसे पांच से 10 दिन तक रखना पड़ेगा. उसमें घाव सूखने की दवा से लेकर भोजन की भी व्यवस्था करनी होगी. कुल मिलाकर पांच हजार रुपये तक खर्च आयेगा. मिस फायर होने की स्थिति में दवा बर्बाद हो जायेगी. घोड़परास के बेहोश होते ही उसकी जांच की जायेगी ताकि उसकी मृत्यु नहीं हो. इसमें उसके जीवन बचाने का भी ख्याल रखना है. उसके छोटे मेल बच्चे यदि पकड़े जाते हैं तो उसे बड्डिजो कास्ट्रेटर विधि से नपुंसक बना दिया जायेगा.
बंदर की नसबंदी के इंफ्रास्ट्रक्चर पर एक करोड़ का खर्च
डाॅ राजीव रंजन ने बताया कि बंदर की नसबंदी के लिये इंफ़्रास्ट्रक्चर तैयार करने पर एक करोड़ रुपये तक का खर्च आयेगा. बंदर को पकड़ने के लिए बेहोशी की दवा की जरूरत नहीं है. वह बहुत कम मेहनत से ही पकड़ में आ जायेगा. बंदर के नसबंदी पर मात्र 200 रुपये तक खर्च आयेंगे.
13 लोगों की होगी टीम
डाॅ राजीव रंजन ने बताया कि उनके नेतृत्व में 13 सदस्यीय टीम होगी . टीम में उनके साथ दो और चिकित्सक, पांच कंपाउंडर और पांच धड़पकड़ करने वाले लोग होंगे. तीनों चिकित्सक ही बेहीशी वाली गन चलायेंगे. गन की कीमत साढ़े तीन लाख रुपया है. इसमें कोई आवाज भी नहीं है. टीम के सदस्य भी आपस में इशारे में बात करेंगे. राजीव रंजन बताते हैं कि मुजफ्फरपुर प्रमंडल के पास एक गन है. वे देहरादून में गन चलाने की ट्रेनिंग लिये थे, निशाने में उन्हें प्रथम स्थान आया था.