Tuesday, May 21 2024

मुजफ्फरपुर में जेंडर आधारित हिंसा के खिलाफ 16 दिवसीय अभियान की हुई शुरुआत

FIRSTLOOK BIHAR 21:16 PM बिहार

महिलाओं और लड़कियों ने साझा की बदलाव की कहानियां

मुजफ्फरपुर (बिहार). जेंडर आधारित हिंसा के खिलाफ 16 दिवसीय अभियान की शुरुआत 25 नवंबर को आकांक्षा सेवा सदन के पताही हवाई हड्डा स्थित कार्यालय में संवाद वार्ता कार्यक्रम से हुई.

संवाद वार्ता कार्यक्रम में जिले और स्थानीय स्तर के मीडिया साथियों के साथ प्रेस कांफ्रेंस आयोजित की गयी. जिसमें समुदाय की महिलाओं और किशोरियों ने बदलाव की कहानियां साझा की.

संस्था की संस्थापक एवं सचिव वन्दना शर्मा ने प्रेस वार्ता में कहा, इस 16 दिवसीय अभियान को हम अन्तराष्ट्रीय संस्था क्रिया की मदद से 10 पंचायतों में सम्पन्न करेंगे. इस दौरान नुक्कड़ नाटक, आपसी संवाद, हस्ताक्षर अभियान, दीवार लेखन, पेंटिंग जैसी कई गतिविधियाँ आयोजित की जायेंगी. हमारा मकसद है इस 16 दिवसीय अभियान से लोगों में जेंडर आधारित मुद्दों पर जागरुकता बढ़े. खासकर महिलाएं अपने हक़ और अधिकार समझें, उनमें निर्णय लेने की क्षमता बढ़े. राजनीतिक भागीदारी में उनकी सक्रियता दिखे.

बदलाव की कहानियों से दूसरी महिलाओं का बढ़ेगा उत्साह

वन्दना कहती हैं, इस अभियान के दौरान उन महिलाओं और किशोरियों की बदलाव की कहानियां भी साझा होंगी जिन्होंने बीते वर्षों में अपने समुदाय में लीडर बन आगे आयी हैं. बदलाव की इन कहानियों से दूसरी महिलाओं का उत्साह बढ़ेगा और वो भी आने वाले समय में अपने समुदाय में नेतृत्व की भूमिका में आगे आयेंगी.

बच्चों की शिक्षा से 27 साल पहले हुई थी आकांक्षा सेवा सदन की शुरुआत

वंदना ने कहा कि आकांक्षा सेवा सदन बिहार के मुजफ्फरपुर में बीते 27 वर्षों से काम कर रही है. संस्था की शुरुआत बच्चों की शिक्षा से हुई थी. लेकिन अभी ये संस्था जेंडर आधारित मुद्दों के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण एवं महिलाओं और किशोरियों के कौशल विकास पर काम कर रही है ताकि महिलाएं आर्थिक रूप से सशक्त होकर आत्मनिर्भर बन सकें.

कार्यक्रम में पहुंची भूतपूर्व मुखिया शोभा कुमारी (31 वर्ष) आत्मविश्वास के साथ कहती हैं, मैं इस संस्था (आकांक्षा सेवा सदन) से पांच साल पहले जुड़ी जब मैं मुखिया बनी थी. जीतने के बाद नहीं सोचा था कि मुझे अपनी पंचायत में खुद से काम करने का मौका मिलेगा पर जब यहाँ से जुड़े तो मैंने खुद से अपनी पंचायत में काम करना शुरू किया. एक स्कूटी खरीदी जिससे इधर-उधर अकेले ही चले जाते हैं.

बेटी के साथ मैं भी इंटर में पढ़ाई करती हूं

शोभा कहती हैं, मेरी शादी 15 साल की उम्र में हो गयी थी तब मैं पांचवी में पढ़ती थी लेकिन शादी के बाद हमने मैट्रिक पास किया. अभी अगली साल इंटर के एग्जाम दूंगी. इस साल मेरी बेटी भी इंटर में है और मैं भी इंटर में हूँ. अभी मैं अपनी जानकारी में किसी का भी कम उम्र में शादी नहीं होने देती हूँ.

शोभा संवाद वार्ता कार्यक्रम में लगभग 15 किलोमीटर दूर से आयी हुई थीं. शोभा की बातें सुनकर यहाँ बैठी महिलाओं ने जोरदार तालियां बजाकर उनके काम की सराहना की.

प्रेस वार्ता कार्यक्रम में एक गैर सरकारी संस्था अखिल ग्रामीण युवा विकास समिति के संस्थापक सुबोध पाण्डेय ने कहा, हम जो बदलाव समाज में देखना चाहते हैं वो बदलाव हमें अपने घर से करना होगा. किसी भी रुढ़िवादी परम्परा को तोड़ने के लिए समाज के किसी व्यक्ति को आगे आना होगा. मेरे पिता जी के अंतिम संस्कार में हमारी बेटी और पत्नी ने कन्धा दिया. हमारे घर की महिलाएं शमशान घाट पर गईं. हमारे साथ-साथ उन्होंने भी अग्नि दी. उस दिन दबी जुवान से लोगों ने विरोध किया लेकिन अभी लोग इसे करने लगे हैं.

वंदना कहती है कि इस 16 दिवसीय अभियान को पूरी दुनिया में करीब 200 देश चलाते हैं. इस अभियान की शुरुआत वर्ष 1991 में रटगर्स यूनिवर्सिटी में सेंटर फॉर विमेंन ग्लोबल लीडरशिप द्वारा आयोजित पहले महिला वैश्विक नेतृत्व संस्थान द्वारा की गयी थी. तब से अबतक 187 देशो की 6,000 से ज्यादा संस्थाएं इस अभियान में शामिल हो चुकी हैं.

क्रिया संस्था के सहयोग से यह अभियान बिहार, झारखंड और यूपी में चलाया जा रहा है. इस अभियान का समापन जिला स्तर पर 10 दिसंबर को मानवाधिकार दिवस के दिन किया जाएगा. क्रिया एक अन्तराष्ट्रीय संस्था है जो देशभर में कई गैर सरकारी संस्थाओं की मदद से विभिन्न समुदाय आधारित कार्यक्रम करती है , जिसमें दिव्यांगता में जी रही महिलाओं, किशोरियों, ट्रांस समूहों, महिला पंचायत के नेतृत्व विकास, यौन कार्यकर्ता समूहों के साथ-साथ हाशियें पर खड़े समुदायों के साथ काम करती है. ये संस्था महिला समूहों में नारीवादी नेतृत्व का निर्माण एवं विभिन्न मुद्दों के बीच आंदोलन निर्माण को मजबूती देती है.

इस प्रेस वार्ता में शामिल रूपा कुमारी (18 वर्ष) ने आत्मविश्वास से कहा, जब मैंने पहली बार फ़ुटबाल खेलना शुरू किया तो लोग कहते थे फ़ुटबाल खेलना लड़कों का काम है. बहुत मुश्किल से घर वालों को मनाया तब घर वाले माने और मैं फ़ुटबाल खेलने लगी. जब लड़कियों को अपनी मर्जी से कोई भी काम करने की इजाजत मिलती है तो वो बहुत खुश होती हैं.

शोभा और रूपा की तरह इस प्रेस वार्ता कार्यक्रम में पहुंची कई महिलाओं ने अपने अनुभव साझा किये. कार्यक्रम में लगभग 50 लोग शामिल थे.

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