मुजफ्फरपुर : राजनीति में सुचिता, ईमानदारी, संघर्ष के प्रतीक एक बुलन्द आवाज, एक भव्य व्यक्तित्व पूर्व मंत्री नलनी रंजन आज सदा के लिए इस दुनिया को सदा के लिए छोड़कर चल दिए। उनका निधन शनिवार को सुबह आठ बजे हो गया।
नलिनी रंजन सिंह के जीवन काल व उनके व्यक्तित्व पर चर्चा करते हुए वरिष्ठ कांग्रेसी नेता मुकेश त्रिपाठी बताते हैं कि उनकी पहचान विराट थी, नाम ही काफी था।
बिहार सरकार में काबिना मंत्री (भवन एवं आवास मंत्री, बिहार सरकार, 1991-1995) रहे थे। मुजफ्फरपुर जिले के कांटी विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र से 1980 से 1995 तक लगातार विधायक रहे।
मुजफ्फरपुर के राम दयालु सिंह कॉलेज के मनोविज्ञान के प्राध्यापक के रूप में ख्याति अर्जित करने वाले नलिनी बाबू धारा के विपरीत संघर्ष की राजनीति के प्रतीक थे।
1980 में पूरे बिहार में एसयूसीआई के एक मात्र विधायक थे
मुकेश त्रिपाठी बताते हैं कि 1980 में पूरे बिहार में एसयूसीआइ के एकमात्र विधायक कांटी से वे निर्वाचित हुए थे, जो उनकी ज़मीनी संघर्ष का ज्वलन्त उदाहरण था।
1980 में उन्होंने राजनीति की मुख्य धारा से लड़कर सफलता अर्जित की थी।
बिहार सरकार के तत्कालीन मंत्री स्व ठाकुर प्रसाद सिंह जो जनता पार्टी से थे और प्रो शम्भू शरण ठाकुर कांग्रेस से उम्मीदवार थे, उन्हें हराकर विजयी हुए थे।
तारकेश्वरी सिंहा को किये थे पराजित
उनके लिए 1985 का चुनाव कितना विकट था।
भारतीय राजनीति की बड़ी हस्ती पूर्व केंद्रीय मंत्री स्व तारकेश्वरी सिंहा को उनके विरुद्ध लड़ने के लिए कांटी बुलाई गई थी।
संघर्ष बड़ा कठिन था पर कभी संघर्ष से से हार नहीं मानने वाले नलिनी बाबू ने फिर एक बार एसयूसीआइ से विजयी घोषित हो ही गये और निकट की लड़ाई में तारकेश्वरी सिन्हा को हराते हुए अपनी जमीनी पकड़ का परिचय दिया था।
पूर्व मंत्री शंभू शरण ठाकुर को किये थे पराजित
राजनीति के इस धुरन्धर ने 1990 का चुनाव जनता दल से लड़ा और कांग्रेस के प्रो शम्भू शरण ठाकुर को फिर अच्छे खासे मतो से हराकर विजय श्री की माला पहनी।
लालू प्रसाद यादव के मंत्रिमंडल विस्तार में इन्हें काबिना मंत्री बनाया गया।
संयुक्त बिहार के काबिना मंत्री के रूप में इन्होंने अपनी कर्मठता, मेहनत, लग्न, सूझबूझ से छाप छोड़ी।
राजनीतिक लड़ाई तो ये शुरू से ही लड़ते रहे,
शायद लड़ाकू प्रवृति बालपन से ही।
1995 का चुनाव में ये कांटी से समता पार्टी से लड़े पर विजयी से वंचित रह गए।
पारिवारिक भीषण हादसा और उम्र को उन्होंने कभी अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया।
जीवटता व कर्मठता के प्रतीक थे।
एक बड़े जमींदार परिवार में जन्म लेने वाले नलिनी बाबू बनारस व लन्दन में उच्च शिक्षा प्राप्त की थी। प्रोफेसर का सम्मानजनक सेवा में रहें, पर विचारो से वामपन्थी व गलत व्यवस्था के विरोधी थे।
राजा रुक्मणि रमन सिंह, सीतामढ़ी के रीगा स्टेट जो कट्टर कांग्रेसी थे उनके सबसे बड़े पुत्र नलिनी बाबू वाम विचारो से ओत-प्रोत और संघर्ष के प्रतीक के रूप में 1965 के बाद मुजफ्फरपुर शहर में उभड़ रहे थे जो कि जनमानस में चर्चा का विषय बन चुका था।
विचारधारा से नहीं किया समझौता
मुकेश त्रिपाठी बताते हैं कि राजनीति की सबसे बड़ी विडंबना 1967 में इनके अत्यंत निकट के रिश्तेदार, अभिभावक राजनीति के एक बड़े हस्ती स्व महेश प्रसाद सिंह कांटी चुनाव लड़ने आ गए।
उनके विरोध का कमान विरोधियों ने इन्हें ही थमा दिया।
नलिनी बाबू पीछे नही हटे अपने विचार धारा से डटे रहे और जमकर विरोध में प्रचार किया।
बुलन्द आवाज, शानदार व्यक्तित्व, भाषण देने की अद्धभुत शैली, वाक कला के धनी, भासा पर पकड़ ,व्याहारिकता में निपुण ऊपर से लड़ाकू,
और संघर्ष सड़क पर सत्ता व व्यवस्था के विरुद्ध।
मानवता की सेवा, पीड़ितों का साथ, जुल्म का ख़िलाफ़त अनवरत सिलसिला जारी रखा।
खूब लड़े चुनावी राजनीति में। कहीं से पीछे नहीं रहे चाहे पार्टी छोटी ही क्यूँ न हो।
1972 में कांटी से विधानसभा लड़कर अपनी ताकत दिखलाई। 1977 में फिर कांटी से चुनाव लड़े, जनता पार्टी की लहर के विपरीत भी लड़कर काफी कम मतो से पराजित हुए।
1977 में तो मुजफ्फरपुर संसदीय क्षेत्र से भी पार्टी के कहने पर जार्ज फर्नाडीस के खिलाफ चुनाव लड़कर अपनी संघर्ष को दिखलाया था।
किताबों की दुनिया में खोये
1995 के बाद राजनीति के नए स्वरूप में ये ढल नहीं पाए और अपना पुराना शौक किताबो की दुनिया मे खो गए।
पढ़ाकू स्वभाव तो बचपन से ही रहा, अध्ययन में तो कभी पीछे नहीं रहे।
किताबो की भरमार, बिस्तर पर तकिया कम ,बस चारो तरफ बिखरी हुई किताबें।
लिखने-पढ़ने का शौक अंत काल तक रहा।
राजनीति से हटने पर भी समाज से कट नहीं गए थे।
पढ़ाकू थे, शिक्षा से जुड़े हुए थे तो राजनीति से विलग होने के बाद शिक्षा का ही अलख जगाया।
मुजफ्फरपुर में चेतन साधन इंस्टिट्यूट उत्तर बिहार का एक प्रमुख शैक्षणिक संस्थान बनकर उभरा,
आईटीआई और पॉलिटेक्निक कॉलेज भी खोलने के ये प्रयास रत थे।
पारिवारिक हादसा में सबकुछ बिखर गया, पर टूटने के बाद भी लड़ते रहे
विदेश में पारिवारिक हादसा जिसमें इनके इकलौते पुत्र चेतन साधन इंजीनियर और धर्मपत्नी का दुःखद निधन हो गया , खुद बुरी तरह घायल हो गए थे,
चोट से पीड़ित रहे पर अंत तक टूटे नही लड़ते रहे। अपने जीवन पथ से सकारात्मक ऊर्जा के साथ।
ओजस्वी वाणी के धनी नलिनी बाबू की पुत्री सुमिता नूपुर भी शिक्षा जगत से जुड़ी हुई हैं, उनके दामाद टाटा स्टील में बड़े अधिकारी के रूप में कार्यरत, नातिन व नाती दोनों शिक्षा ग्रहण करने में तल्लीन।
आज एक राजनीति का, समाज का बड़ा सितारा बुझ गया, एक गूंजता आवाज खामोश हो गया सदा के लिए, पर अपना अमिट छाप छोड़ गया समाज पर।
युवा पीढ़ी को लेनी चाहिए सीख
मुकेश त्रिपाठी बताते हैं की युवा पीढ़ी इनके जीवन वृतांत से कुछ सीख सकते,प्रेरणा ले सकते हैं।
मेरा तो इनसे व्यक्तिगत सम्बन्ध परिवारिक भी, राजनीतिक भी, सामाजिक भी रहा।
काफी खट्टा-मिट्ठा साथ रहा।
सीखा है इनसे, कुछ ग्रहण ही किया है।
हमसे 30 वर्ष उम्र में बड़े थे पर मन से हमसे युवा थे। श्री त्रिपाठी बताते हैं कि
अभी हमारे पितामह स्व यमुना प्रसाद त्रिपाठी जी, पूर्व विधायक कांटी के जीवनी पर जब एक छोटी सी पुस्तक निकल रही थी तो इन्होंने अपना उनसे जुड़ा संस्मरण लिखा था।
कुछ दिन पूर्व तक व्हाट्सएप्प पर इनका मैसेज आ रहा था,
पर आज अचानक सुबह सुबह इनके रिश्तेदार विनीता मिश्रा का फोन जब आया और उन्होंने नलिनी बाबू के देहावसान की खबर दी तो मैं तो हतप्रभ रह गया।