Friday, May 17 2024

प्रेतशिला: प्रेत के नाम से किया जाता है पिंडदान, अकाल मृत्यु को प्राप्त शरीरधारी जीव को यही मिलता है मोक्ष

FIRSTLOOK BIHAR 23:14 PM खास खबर

करीब एक हजार फीट ऊंची प्रेतशिला पर्वत पर पिंडदान करने से मृतआत्माओं को मिलती है मुक्ति

विराजते हैं तीन प्रेत राज, इनके नाम हैं- राजस्य, तामस व सार्थ
गया : बिहार के गया में पितृपक्ष मेला के तीसरे दिन रविवार को गयाजी के प्रेतशिला वेदी पर पिंडदान किया जाता है। यहां प्रेत के नाम से पिंडदान करने की सदियों से परंपरा चली आ रही है। ऐसी मान्यता है कि अकाल मृत्यु होने पर आत्मा भटकती रहती है। उन्ही आत्मा की शांति के लिए उस जीव के वंशज प्रेतशीला पहुंचकर वेदी पर पिंडदान तर्पण करते हैं। शास्त्रों में पर्वत को प्रेतशिला के अलावा प्रेत पर्वत, प्रेतकला एवं प्रेतगिरि भी कहा जाता है। प्रेतशिला पहाड़ी की चोटी पर एक चट्टान है। जिस पर ब्रह्मा,विष्णु और महेश की मूर्ति बनी है। श्रद्धालुओं द्वारा पहाड़ी की चोटी पर स्थित इस चट्टान की परिक्रमा कर के उस पर सत्तु से बना पिंड उड़ाया जाता है।

प्रेतशिला पर सत्तू से पिंडदान की परंपरा है

प्रेतशिला पर सत्तू से पिंडदान की पुरानी परंपरा है। पहाड़ की चोटी पर तरह-तरह के वनस्पति व आसमान में उड़ते पंछी भी तमाम पिंडदानियों का मन मोह लेते हैं।

इस संबंध में गया गजाधर धाम पांडा समिति सदस्य शिवा कुमार पांडे ने प्रेतशिला वेदी की महत्व को बताते हुए कहा कि इस स्थान पर पिंड देने से पितरों के मोक्ष की गति प्राप्त होती है इस स्थान पर दो वेदी है। एक ब्रह्मकुंड और एक प्रेतशिला। यहां जो तालाब है इसका उल्लेख वायु पुराण में किया गया है। पूर्व में यह घी का तालाब था। ब्रह्मा भगवान इस तालाब के पास यज्ञ किए थे। तब से इस तालाब का ब्रह्म तालाब पड़ा है।

प्रेतशिला जहां पर ब्रह्मा भगवान का चरण के साथ तीन सोने की लकीर है वही तीन प्रेत राज हैं। तीनो प्रेत राज का नाम राजस्य, तामस व सार्थ है। यहां पर पिंड देने से पितरों को मोक्ष की गति प्राप्त होती है। इधर-उधर भटकती आत्मा को शांति मिलती है। विशेषकर यहां पिंड देने का का महत्व है। अकाल मृत्यु वाले लोग यहां जरूर आते हैं। जो लोग जहर खाकर, फांसी लगाकर, कुआं में गिर के दुर्घटना से उनकी आयु भ्रमण करती है इस स्थान पर पिंड देने से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।

हजार फीट की ऊंचाई पर होते त्रिमूर्ति के दर्शन

गयाजी शहर से 10 किलोमीटर की दूरी पर बसा प्रेतशिला लगभग 1000 फीट ऊंचाई पर स्थित पर्वतीय क्षेत्र है। आसपास हल्के जंगल हैं। पहाड़ चढ़ने के लिए 676 सीढ़ियां चढ़कर ऊपर पहुंचा जाता है। जो पिंडदानी चलने में असमर्थ हैं उनके लिए डोली की सुविधा निजी खर्च कर उपलब्ध हो जाता है। अकाल मृत्यु होने पर मोक्ष दिलाने के लिए प्रेतशिला में पिंडदान करना शास्त्रमत बताया गया है।

प्रेतशीला में ही है गयासुर राक्षस का मुंह

प्रेतशिला में गयासुर राक्षस का मुंह है। यहां पिंडदान करने से भटकती आत्मा को शांति मिलती है। बीते दो वर्षों की कोविड-19 की वजह से पितृपक्ष मेला आयोजन नहीं हो रहा था। देश दुनिया के श्रद्धालु 2022 पितृपक्ष मेला महासंगम का इंतजार कर रहे थे। श्रद्धालुओं की चहल-पहल के साथ पितृपक्ष मेला में काफी भीड़ है।पितृपक्ष का तीसरे दिन का प्रेतशिला में विशेष महत्व है इसी को लेकर के श्रद्धालुओं हजारों की संख्या में पिंडदान तर्पण करने पहुंच रहे हैं। रविवार को करीब 25 हजार से अधिक श्रद्धालुओं ने प्रेतशीला में पिंडदान किया।

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