Thursday, July 04 2024

नालंदा में अरबों की संपत्ति पर कन्हैया बनकर बैठा था मुंगेर का दयानंद गोसाईं

FIRSTLOOK BIHAR 00:38 AM बिहार

बिहारशरीफ (नालंदा): बिहारशरीफ कोर्ट में पिछले 41 वर्ष से संपत्ति के असल वारिश को लेकर चल रहे मामले में मंगलवार को फैसला आ गया। एसीजेएम-पांच मानवेंद्र मिश्रा ने फैसला सुनाया।उन्होंने सिलाव (वर्तमान में बेन) थाना क्षेत्र के मोरगावां निवासी जमींदार स्व. कामेश्वर सिंह का पुत्र कन्हैया बताने वाले को दयानंद गोसाईं करार दे दिया। इस कृत्य के लिए दयानंद गोसाईं को दोषी बताते हुए धारा 419 में तीन वर्ष की सजा, दस हजार जुर्माना, धारा 420 में तीन वर्ष की सजा व दस हजार जुर्माना और धारा 120बी में छह माह की सजा सुनाई। तीनों सजाएं एक साथ चलेंगी। जुर्माने का भुगतान नहीं करने पर छह माह अतिरिक्त कारावास की सजा होगी। वहीं इस मामलें में पहले भी जेल जा चुके दयानंद गोसाईं की सजा इसमें घटा दी जाएगी।

एसीजेएम पांच मानवेंद्र मिश्रा ने फैसला सुनाते हुए कहा कि प्रभु गोस्वामी का पुत्र दयानंद गोस्वामी मुंगेर जिले के लक्ष्मीपुर थाना अंतर्गत लखाई का रहने वाला है। 1981 से वह कामेश्वर सिंह का पुत्र कन्हैया बनकर मोरगावां में रह रहा था। षड्यंत्र के तहत दयानंद गोसाईं अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर जमींदार की संपत्ति पर कब्जा जमा लिया था।

क्या है पुरा मामला

सिलाव (वर्तमान में बेन) थाना क्षेत्र निवासी स्व. कामेश्वर सिंह जमींदार थे। उनके इकलौते पुत्र कन्हैया थे। कन्हैया 1975 में मैट्रिक की परीक्षा देने चंडी गए थे। वहां से वह गायब हो गए। जब वह देर नहीं लौटे तो खोजबीन शुरू की गई। काफी खोजबीन के बाद जब वह नहीं मिले तो सिलाव (वर्तमान में बेन) थाने में केस दर्ज कराया गया। इसी दौरान 1981 में साधु के वेश में एक युवक मोरगावां में भीख मांगने पहुंचा। उसने अपने को यहां के जमींदार कामेश्वर सिंह का पुत्र होने की बात कही। यह बात जंगल में आग की तरह फैल गई। कामेश्वर सिंह 75 वर्ष की उम्र में युवक से मिलने पहुंचे। युवक कामेश्वर सिंह को पिता-पिता कहते हुए गले से लिपट गया। गांव-समाज के लोगों ने पांच वर्ष बीत जाने के कारण आप इसे पहचान नहीं पा रहे हैं। तब उन्होंने लोगों की बातें मानकर युवक को अपने घर में रख लिया। युवक के घर पहुंचने पर मां रामसखी देवी ने भी कहा कि यह मेरा बेटा नहीं है। तब कामेश्वर सिंह की तबीयत ठीक नहीं थी। उन्हें सदमा न लग जाए, इस कारण रामसखी देवी ने उस वक्त कुछ नहीं कहा। इसके बाद कामेश्वर सिंह को समझाया। उन्हें बताया कि यह हमारा बेटा नहीं है। तब 1981 में केस दर्ज हुआ।

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