Tuesday, July 02 2024

कला और संस्कृति समागम में छठे दिन मुम्बई के कलाकारों ने किया लोकमान्य तिलक नाटक का मंचन

FIRSTLOOK BIHAR 17:14 PM बिहार

मुजफ्फरपुर : स्वराज्य के प्रणेता लोकमान्य तिलक की स्मृति में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर स्मृति न्यास, दिल्ली द्वारा मुजफ्फरपुर के रामदयालु सिंह कॉलेज में आयोजित स्वराज्य-पर्व में रविवार की शाम मुम्बई के कलाकारों ने विश्वविख्यात रंगकर्मी मुजीब खान के निर्देशन में तिलक के विराट जीवन और संवादों पर आधारित सुप्रसिद्ध नाटक लोकमान्य तिलक का मंचन किया।

स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा का सर्वप्रथम उद्घोष कर भारत के जन-जन के सुप्त हृदय को झंकृत कर देने वाले और स्वाधीनता आंदोलन की दिशा बदल देने वाले लोकमान्य तिलक पर केन्द्रित यह भव्य और मर्मस्पर्शी नाट्य-मंचन सादगी के साथ मुजफ्फरपुर के दर्शकों की स्मृतियों में सदा के लिये दर्ज़ हो गया।

भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के सबसे प्रखर एवं ओजस्वी नायक के जीवन एवं संवादों पर पुणे, महाराष्ट्र के क़ाज़ी मुश्ताक अहमद द्वारा लिखित नाटक लोकमान्य तिलक ने तिलक जैसे महा मनीषी नेता और उनके समकालीन राष्ट्रीय परिदृश्य को स्वराज्य-पर्व के मंच पर जीवन्त कर दिया। तिलक जी जैसे एक अत्यंत जटिल एवं बहुआयामी चरित्र को साध कर युवा अभिनेता तेजस पारेख ने जिस सहजता के साथ यह भूमिका निभाई उसकी जितनी सराहना की जाये कम है। सीमा रॉय ने तिलक की पत्नी की भूमिका में दर्शकों के मन पर अमिट छाप छोड़ी तथा चार्ल्स की भूमिका में हरीश अग्रवाल, जेलर की भूमिका में हाशिम सैय्यद और स्वामी विवेकानंद की विशिष्ट भूमिका में मोहम्मद अकिल का अभिनय भी प्रशंसनीय रहा। ऐतिहासिक पात्रों एवं परिवेश वाले नाटकों में वस्त्रभूषा एवं रूपसज्जा का महत्व केन्द्रीय रहता है, और इस दृष्टि से अस्फ़िया खान एवं पटना के जीतू ने क्रमशः वस्त्र परिकल्पना और रूपसज्जा द्वारा प्रस्तुति के परिवेश को विश्वसनीय एवं प्रभावी बनाने में बेहद उल्लेखनीय योगदान दिया है।

स्वराज्य-पर्व के अन्तर्गत मुजफ्फरपुर के दर्शकों के लिये लोकमान्य तिलक नाटक का मंचन आयोजित करने वाले राष्ट्रकवि दिनकर स्मृति न्यास, दिल्ली के अध्यक्ष नीरज कुमार ने इस अवसर पर कहा कि आज देश के जन-जन तक लोकमान्य तिलक जैसे हमारे महामनीषी विचारकों एवं महानतम समाज सुधारकों के जीवन और विचारों को पहुंचाने की आवश्यकता बढ़ती जा रही है और इस कार्य के लिये नाटक और रंगमंच की तरह प्रभावी कोई अन्य माध्यम नहीं हो सकता। साहित्य और रंगमंच एक बेहतर मनुष्य और समाज की बुनियाद रखने का काम सदा से करते आये हैं, लेकिन आज सारा माहौल इन्हें हाशिये पर ढकेलने में लगा हुआ है, जो कि अत्यंत पीड़ादायक स्थिति है। नीरज कुमार ने कहा कि समाज और सरकारों को मिल कर साहित्य एवं रंगमंच को पर्याप्त बढ़ावा देने के लिये आगे आना ही होगा, तभी एक सांस्कृतिक भारत का निर्माण संभव हो सकता है।

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