सौरभ शंकर पटेल ,
विषय वस्तु विशेषज्ञ (कटाई उपरांत प्रौद्योगिकी), कृषि विज्ञान केंद्र सारण
प्राचीन काल से चावल का उपयोग मुख्य भोजन के रूप में किया जाता रहा है। आज विश्व के आधे से अधिक जनसंख्या चावल को अपने आहार में मुख्य भोजन के रूप में खाती है। माना जाता है कि अगर चावल न होता तो विश्व में बहुत से लोग भूख से मर जाते। मुख्य भोजन के साथ साथ यह पोषक तत्वों का भी प्रमुख स्रोत माना जाता है। धान को कूटने के पश्चात चावल बनता है। धान को कूटने से उसके ऊपरी सतह में उपस्थित भूसा और चोकर चावल से अलग हो जाता है। पारंपरिक लोग पहले उसना चावल खाते थे पर अब बढ़ती आबादी एवं व्यस्त जीवन शैली के कारण सफेद (अरवा) चावल खाने का चलन बढ़ गया है।
अरवा चावल में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा होती है काफी अधिक
दरअसल, सफेद चावल के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि इसमें कार्बाेहाइड्रेट की मात्रा काफी होती है, ऐसे में इसका नियमित सेवन करने और शारीरिक मेहनत न करने की वजह से स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है लेकिन, सफेद चावल की इसी कमी को उसना चावल दूर कर देता हैै। आज इस लेख में उसना चावल बनाने कि विधि, गुण एवं पोषक तत्व, की चर्चा करेंगे।
अरवा चावल उसना चावल
उसना चावल बनाने (पारबॉयलिंग) की विधि
दरअसल, धान से चावल निकाला जाता है और इसकी प्रक्रिया अलग-अलग होती है। जब धान से सीधे चावल निकाला जाता है तो वह अरवा या सफेद चावल कहलाता है। लेकिन उसना चावल निकालने की विधि थोड़ी अलग होती है। इसमें धान को पहले उबाला या कहें कि भाप में हल्का पकाया जाता है। फिर इसे धूप में सूखाया जाता है। इस तरह धान फिर पहले की तरह सख्त हो जाता है. उसके बाद इससे चावल निकाला जाता है। इस तरह धान से निकाले गए इस चावल का रंग हल्का पीला या भूरा हो जाता है। चावल तैयार करने से पहले धान को उबालने की वजह से उसना चावल के गुण में काफी बदलाव हो जाते हैं। उसना चावल बनाना एक जलतापीय उपचार है, जिसमें तीन चरण क्रमशः भिगोना, उबालना और सुखाना शामिल है। यह प्रक्रिया चावल कि गुणवत्ता पर बहुत प्रभाव डालते हैं। भारत में पारम्परिक उसना चावल बनाने की प्रक्रिया विभिन्न प्रदेशों में अलग-अलग तरीकों से की जाती है।
उसना चावल तैयार करने के पारंपरिक तरीके
1. भिगोना
प्रक्रियाः धान (जो कि बिना छिलका हटाए हुए चावल होता है) को पानी में, आमतौर पर गुनगुने पानी में, कई घंटों तक भिगोया जाता है।
उद्देश्यः इस चरण में चावल पानी सोखता है और इसके स्टार्च को अगले चरण के लिए तैयार करता है। यह स्टार्च के जिलेटिनाइजेशन की प्रक्रिया को भी शुरू करता है।
2. स्टीमिंग (भाप देना)
प्रक्रियाः भिगोने के बाद, चावल को उच्च तापमान पर भाप दी जाती है, जिसे दबाव में या सामान्य वायुमंडलीय परिस्थितियों में किया जा सकता है।
प्रक्रियाः भाप की गर्मी से चावल का स्टार्च पूरी तरह से जिलेटिनाइज़ हो जाता है और सख्त हो जाता है, जिससे पोषक तत्व चावल के दाने में बंद हो जाते हैं और चावल की बनावट मजबूत हो जाती है। यह चावल को पकाने पर कम चिपचिपा बनाता है।
सुखाना
प्रक्रियाः स्टीमिंग के बाद, चावल को सुखाया जाता है, आमतौर पर गर्म हवा या धूप में, जिससे उसकी नमी को कम किया जाता है।
प्रक्रियाः सुखाने से चावल भंडारण के लिए स्थिर हो जाता है और मिलिंग के लिए तैयार हो जाता है। इस चरण के बाद चावल को उसका विशिष्ट पीला रंग भी मिलता है।
पारंपरिक रूप से, उसना चावल बनाने के लिए दो विधि है
सिंगल बॉयलिंग विधिः इस विधि में धान को ठंडे पानी में 2-3 दिनों के लिए भिगोया जाता है, फिर भाप दी जाती है और धूप में सुखाया जाता है।
डबल बॉयलिंग विधिः इस विधि में कच्चे धान को पहले भाप में पकाया जाता है और फिर एक दिन के लिए भिगोया जाता है। फिर से भिगोए गए धान को भाप में पकाया जाता है और पहले की तरह सुखाया जाता है। ये दोनों विधियां अच्छे चावल देती हैं, लेकिन लंबे समय तक भिगोने के कारण उनमें हल्की सी अप्रिय गंध और गहरा रंग आ जाता है।
इस समस्या को दूर करने के लिए, आधुनिक पारबॉयलिंग संयंत्रों में धान को लगभग 70° गर्म पानी में 3-4 घंटे के लिए भिगोया जाता है, 4 Cm² दबाव पर भाप दी जाती है और फिर सुखाया जाता है।
आधुनिक पारबॉयलिंग संयंत्र
बिहार, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, असम, तमिलनाडु और केरल के राज्यों में, उसना चावल को ज्यादा पसंद किया जाता है। इन राज्यों के किसान पारंपरिक विधि से धान की पारबॉयलिंग छोटे बैचों में करते हैं, जो कि एक श्रमसाध्य प्रक्रिया है, और इसके परिणामस्वरूप निम्न गुणवत्ता का चावल उत्पन्न होता है।
ग्रामीण क्षेत्रों में उपयोग के लिए उपयुक्त एक उन्नत परबॉयलिंग तकनीक की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए, राष्ट्रीय धान अनुसंधान संस्थान, कटक के इंजीनियरिंग विभाग में एक मिनी आधुनिक पारबॉयलिंग प्रणाली विकसित की गई जो छोटे किसानों के बीच काफी लोकप्रिय है । इस प्रणाली में परबॉयलिंग की एक उन्नत विधि का उपयोग किया गया है, जिसमें कुछ संशोधन किए गए हैं ताकि इसे ग्रामीण परिस्थितियों में आसानी से लागू किया जा सके।
निर्माण एवं कार्यप्रणाली
यह एक बेलनाकार इकाई है, जो 20 गज के माइल्ड स्टील शीट से निर्मित होती है। इसे बनाने के लिए आमतौर पर 200 लीटर क्षमता वाले खाली तेल के ड्रम का उपयोग किया जाता है ताकि निर्माण लागत कम हो। इस इकाई में दो कक्ष होते हैं, जिन्हें एक छिद्रयुक्त विभाजन द्वारा अलग किया जाता है। इस विभाजन के माध्यम से भिगोने और भाप देने की प्रक्रिया एक ही इकाई में संभव होती है। इसके अलावा, एक केंद्रीय ळ.प्. पाइप और छिद्रयुक्त पार्श्विक पाइप लगाए जाते हैं ताकि भाप का समान वितरण हो सके। विभाजन के ठीक नीचे एक नल दिया गया है, जिससे भिगोने के बाद पानी को आसानी से निकाला जा सके।
विनिर्देश:
प्रकार/मॉडल पोर्टेबल/बैच
क्षमता 75 किलोग्राम प्रति बैच
व्यास 570 मिमी
ऊंचाई 895 मिमी
वजन 37 किलोग्राम
केंद्रीय पाइप का आंतरिक व्यास 25 मिमी
पार्श्व पाइपों का आंतरिक व्यास 12.5 मिमी
पार्श्व पाइपों की संख्या 12
इकाई की लागत 7000 रू
इस प्रक्रिया को किसानों के स्तर पर सरल बनाने के लिए पारबॉयलिंग इकाई को उचित आकार के पारंपरिक लकड़ी के चूल्हे पर रखा जाता है। इसमें लगभग 100 लीटर पानी भरा जाता है और उबाल आने तक गर्म किया जाता है। इस समय पानी का तापमान लगभग 95° सेंटीग्रेड होता है, जिसे प्राप्त करने में लगभग एक घंटे का समय लगता है। अब एक बोरी धान (75 किलोग्राम) इस गर्म पानी में डाला जाता है, जिससे मिश्रण का तापमान लगभग 75° सेंटीग्रेड तक कम हो जाता है। इस अवस्था में धान को 3.5 घंटे तक भिगोया जाता है। इस अवधि के दौरान, चूल्हे में बचे हुए सुलगते कोयले धीरे-धीरे जलते हैं और पारबॉयलिंग इकाई को गर्मी प्रदान करते हैं, जिससे धान-पानी मिश्रण का तापमान लगभग 70° सेंटीग्रेड पर बनाए रखा जाता है। इसके बाद पानी को नल के स्तर तक निकाल दिया जाता है। शेष पानी को भाप बनाने के लिए और अधिक गर्म किया जाता है। ऊपरी परत पर भूसी के फटने से पारबॉयलिंग की प्रक्रिया पूर्ण होने का संकेत मिलता है। भाप देने की प्रक्रिया को पूरा करने में लगभग 45 मिनट का समय लगता है।
पारबॉयलिंग किया हुआ चावल डिस्चार्ज गेट से निकाला जाता है और धूप में 2-3 चरणों में, सुखाया जाता है जब तक कि इसका वजन स्थिर न हो जाए। प्रायः 2-3 घंटे के सुखाने के बाद, अनाज को ढेर कर कम से कम एक घंटे के लिए ढक कर रखा जाता है ताकि धान के कर्नेल के भीतर नमी की समानता बनी रहे और सुखाने की दर बढ़ाई जा सके।
पारबॉयलिंग ड्रम
उसना चावल पौष्टिकता से भरपूर होता है। उसना चावल के लाभ नीचे बिंदुवार अंकित है
यह प्रक्रिया अनाज को एक सख्त बनावट और चिकनी सतह प्रदान करती है जिसके परिणामस्वरूप चावल कम टूटती है। इस कारण से धान की कुटाई के पश्चात् 3-5 प्रतिशत ज्यादा चावल प्राप्त होता है।
उसना चावल की सख्त और चिकनी सतह के माध्यम से कीड़ों को काटने और खाने में अधिक मुश्किल होती है।
चावल को पकाने के दौरान चावल का कुछ भाग पानी में घुल जाता है, उसना चावल में यह नुकसान ना के बराबर होता है।
उसना चावल में अरवा चावल की अपेक्षा अधिक विटामिन बी, खनिज एवं लवण पाया जाता है, ऐसा इसीलिए होता है की उसना चावल बनाते वक़्त धान के भूसे में उपस्थित पोषक तत्व चावल में आ जाते हैं।
उसना चावल पकने के उपरांत कम चिपचिपा होता है। उसना चावल के भूसी में लगभग 20-30 प्रतिशत तेल होता है जो कि अरवा चावल के भूसी (10-20 प्रतिशत) से अधिक है।
उसना चावल की भूसी कच्चे चावल की तुलना में अपेक्षाकृत स्थिर होती है।
उसना चावल बनाने के नुकसान
यह चावल, अरवा चावल की तुलना में अपेक्षाकृत गहरा रंग का होता है।
पारंपरिक तरीके से बनाया हुआ उसना चावल में अवांछनीय गंध होती है।
उसना चावल, अरवा चावल की तुलना में उतनी ही कोमलता से पकने में अधिक समय लेते हैं।
पारंपरिक प्रक्रिया में लंबे समय तक भिगोने के कारण इसमें मायकोटॉक्सिन विकसित हो सकते हैं और स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं।
छिलके वाले हल्के उसना चावल को पॉलिश करने के लिए अधिक शक्ति की आवश्यकता होती है।
उबालने की प्रक्रिया के लिए अतिरिक्त निवेश की आवश्यकता होती है।
बिहार राज्य में अब सरकारी सहायता से अरवा चावल के मील नहीं लगेंगी। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जन वितरण दुकानों में उसना चावल देने को स्वास्थ्य के लिहाज से बेहतर माना तो सहकारिता विभाग ने उसना चावल मिलों पर ही काम करना शुरू कर दिया है। विभाग नये मिलों की डीपीआर तो बनाएगा ही साथ में पुराने अरवा चावल मिलों को उसना में बदलने की लागत का भी आकलन करेगा। लागत अनुमान के अनुसार हुआ तो नयी मिलों के साथ पुरानी का भी उसना में बदलने की प्रक्रिया शुरू होगी।