मुजफ्फरपुर : मुजफ्फरपुर स्थित ललित नारायण मिश्र कॉलेज ऑफ बिजनेस मैनेजमेंट में पूर्व रेल मंत्री, स्व० ललित नारायण मिश्र के बलिदान दिवस के अवसर पर उनके प्रतिमा पर माल्यार्पण कर महाविद्यालय के शिक्षकों एवं कर्मचारियों द्वारा श्रद्धांजली अर्पित की गई। इस अवसर पर महाविद्यालय के निदेशक डा० मनीष कुमार ने कहा कि बिहार के पिछड़ेपन के लिए उनके मन में आकुलता थी और सत्ता के उच्च शिखरों पर आसीन रहकर उन्होंने इसके निवारण के लिए भरसक प्रयत्न किए। बिहार के सुदूरवर्ती क्षेत्रों में रेलगाड़ी चलाकर वहाँ के निवासियों को देश के कोने-कोने तक पहुँचने की सुविधा सुलभ कराने की जितनी योजनाएँ उन्होंने बनायी थीं उनमें से कुछ तो साकार हुई पर अधिकांश का साकार होना उनको दुर्भाग्यपूर्ण हत्या के कारण संभव नहीं हो पाया।
मिथिला की चित्रकला को मधुबनी पेंटिंग का जामा
मिथिला की चित्रकला को मधुबनी पेटिंग का जामा पहनाकर देश-विदेश में उसके लिए धूम मचा देगा और सिकी की बनी वस्तुओं को गरिमामय सजावट-सामग्री जताकर प्रशस्त्र व्यापारिक द्वार खोलना उनकी प्रशासनिक दूरदर्शिता का परिचायक है। इससे बिहार वासियों को अपनी स्थिति संभालने का सुनहरा अवसर मिला।
हिमालय से कन्याकुमारी तक बनाई थी व्यापक मित्रमंडली
इस अवसर पर महाविद्यालय के कुलसचिव डा० कुमार शरतेंदु शेखर ने कहा कि 3 जनवरी हमें याद दिला जाती है बिहार के गौरवमय सपूत और भारतीय राजनीति के प्रकाशवान नक्षत्र श्रद्धेय ललित बाबू की, जिनका व्यक्तित्व समन्वयवादी विचारों की प्रतिमूर्ति था। उन्हें अध्यात्म के सूक्ष्म स्वरुप में गहरी निष्ठा थी। उनकी वाणी एवं चिंतनधारा में मानवीय मूल्यों पर आधारित आध्यात्मिक परम्परा का आभास मिलता था। अपने मृदुल स्वभाव और मधुर वाणी द्वारा उन्होंने हिमालय से कन्याकुमारी तक विशाल भू-भाग में व्यापक मित्रमंडली बना ली थी। स्वभाव में तो नम्रता थी पर कर्तव्य समक्ष होने पर उनके निर्णय बज्र सदृश कठोर होते थे जिसका आभास उनके निकटतम व्यक्तियों को भी पहले नहीं हो पाता था और वे चकित-विस्मत हो उठते थे। लोकहित में कठोर से कठोर निर्णय लेने में उन्हें हिचक नहीं होती थी। अविचल भाव से देश की सेवा करते हुए उन्होंने कर्तव्य की बलिवेदी पर अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। कोई भी बाधा उन्हें अपने कर्तव्य-पथ से विमुख नहीं कर सकी।
जनसहयोग से से योजनाओं के कार्य संपादन के हिमायती
ललित बाबू जनसहयोग द्वारा योजनाओं के कार्य संपादन के हिमायती थे। अपनी कल्पनाशीलता और पीड़ित मानव के दुखदर्द के प्रति संवेदनशीलता के प्रभाव में उन्होंने कोशी क्षेत्र के लोगों की वेदना को पहचाना और भारत सेवक समाज के माध्यम से उस विनाशकारी कोशी नदी के नियंत्रण के लिए जो प्रयास
आरंभ किए उनसे जन जागरण तो हुआ ही और त्राण हुआ प्रति वर्ष मलेरिया, कालाजार एवं अन्य महामारी से काल कलवित होने वाले अनगिनत लोगों का।
ललित बाबू की दूरदर्शी सोच से ही मैनेजमेंट काॅलेज की स्थापना
महाविद्यालय के प्रबंधन संकाय के अध्यक्ष डा० श्याम आनन्द झा ने कहा कि स्व० ललित बाबू के ही दूरदर्शिता का ही परिणाम यह महाविद्यालय है। वर्ष 1973 में उन्हीं की प्रेरणा से डा० जगनाथ मिश्र, पूर्व मुख्यमंत्री के द्वारा इस महाविद्यालय की स्थापना की गई। वह ऐसा समय था जब बिहार में कम ही लोग प्रबंधन की शिक्षा के बारे में जानते थे। आज इस महाविद्यालय के हजारों छात्र सरकारी एवं गैर सरकारी प्रतिष्ठानों में उच्च पदों पर आसीन है।