Sunday, May 18 2025

मछुआरों के हित में संसद तक गूंज उठी बिहार की आवाज, सांसद राजीव प्रताप रूडी ने लोकसभा में रखा बिहार के मछुआरों का पक्ष

FIRSTLOOK BIHAR 16:10 PM बिहार

छपरा : बिहार की पावन धरती पर बहती गंगा के जल में मछुआरों के श्रम का पसीना घुल जाता है, लेकिन उनके परिश्रम का मूल्य उन्हें नहीं मिलता आज लोकसभा में सारण से भाजपा सांसद सह पूर्व केंद्रीय मंत्री राजीव प्रताप रूडी ने इस पीड़ा को संसद के पटल पर रखा और बिहार के लाखों मछुआरों की आवाज़ को बुलंद करने के साथ मत्स्यपालन से जुड़े देश के मछुआरों एवं उनके परिवारों के भविष्य को उज्ज्वल बनाने के लिए ठोस कदम उठाने की मांग की उन्होंने प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत बिहार के मछुआरों को वित्तीय सहायता, मत्स्य खुदरा बाजार में उचित मूल्य, तथा राज्य में मॉडल मत्स्यपालन ग्राम परियोजना से संबंधित विषयों पर सरकार से जवाब मांगा





सांसद रूडी की चुटकी,बहुत दिनों बाद आया नंबर

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला द्वारा तारांकित प्रश्न संख्या 101 बुलाए जाने पर सांसद श्री रूडी ने चुटकी लेते हुए कहा, ‘बहुत दिनों बाद नंबर आया है!’ फिर उन्होंने गंभीर मुद्दे पर आते हुए बताया कि भारत में मछली खाने वालों की संख्या 95 करोड़ है, जबकि मछली खिलाने वाले मछुआरों की संख्या मात्र 1 करोड़



इसमें से 40 लाख मछुआरे अकेले बिहार में हैं, जो तालाबों, पोखरों और नदियों के जल में परिश्रम की लहरें बहाते हैं

उन्होंने लोकसभा में बताया कि वर्ष 2014 में इनलैंड फिशिंग उत्पादन 46 लाख टन था, जो 2025 में बढ़कर 131 लाख टन हो गया यह केंद्र सरकार की योजनाओं का परिणाम है, परंतु बिहार के मछुआरों को वित्तीय सहायता योजना का लाभ क्यों नहीं मिला? सांसद ने यह भी उल्लेख किया कि 2022-23, 2023-24 और 2024-25 में बिहार के मछुआरों को योजना के तहत एक भी रुपया नहीं मिला! उन्होंने मंत्री से आग्रह किया कि बिहार के मछुआरों को उनका हक़ मिलना चाहिए

केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री ललन सिंह ने दिया जबाव

केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री ललन सिंह ने उत्तर देते हुए स्वीकार किया कि 2013-14 में देश में 95.7 लाख टन मछली उत्पादन था, जो अब बढ़कर 184.02 लाख टन हो गया है इनलैंड फिशिंग में 126 प्रतिशत वृद्धि हुई है उन्होंने बताया कि प्रतिबंधित समय के दौरान मछुआरों को 4500 रुपये की सहायता दी जाती है, जिसमें केंद्र, राज्य और लाभार्थी की हिस्सेदारी होती है हालांकि, बिहार में यह योजना क्यों लागू नहीं हुई, इस पर स्पष्ट उत्तर नहीं मिला

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