बनारस घराने के प्रसिद्ध संगीतकार उस्ताद वज्जन खान का ९० वर्ष की आयु में रविवार की शाम तिनकोठिया स्थित उनके निवास पर निधन हो गया । वह कुछ महीनों से सांस की बीमारी से परेशान थे। उन्हें कोविड नहीं था।
१९७४ में वह मुज़फ़्फ़रपुर आए और फिर यहीं के होकर रह गए ।उन्होंने ख़याल, ठुमरी व ग़ज़ल गायकी में काफ़ी नाम कमाया था। आकाशवाणी पटना से उनके कार्यक्रम नियमित रूप से प्रसारित होते थे । मुज़फ़्फ़रपुर आने से पहले उनके कार्यक्रम आकाशवाणी लखनऊ से प्रसारित होते थे ।
उनकी तालीम उनके पिता उस्ताद शाकिर ख़ान से हुई थी । उनके शिष्यों में प्रमुख रूप से पद्मभूषण पंडित छन्नू मिश्रा, आकाशवाणी पटना के प्रसिद्ध ग़ज़ल कलाकार रतीन्द्र किंजल्क , हृदय नारायण आर्य, डॉ अरविन्द कुमार व डॉ आश्विनी कुमार हैं। उन्हें नेशनल इंडियन म्यूज़िक सर्किल द्वारा 2005 में लिच्छवि संगीत सम्मान से नवाज़ा गया था ।
उन्होंने अपने पीछे तीन पुत्र व भरा पूरा परिवार छोड़ गए हैं । उनके जाने से कला प्रेमियों के बीच गहरा शोक है।
आकाशवाणी दिल्ली के वरिष्ठ सितार कलाकार पंडित ( डॉ) निशीन्द्र किंजल्क ने कहा कि ख़ान साहब एक अच्छे वायलिन वादक भी थे और उनके पास पारंपरिक बंदिशों का बढ़िया संकलन था। उनके जाने से पूरब अंग की पारंपरिक गायकी का एक स्तम्भ ढह गया।
उनके शागिर्द ग़ज़ल गायक रतीन्द्र किंजल्क ने कहा कि ख़ान साहब के गले से सुरों का सच्चा स्वरूप निकलता था। उनकी कई ग़ज़लों ने काफ़ी शोहरत हासिल की । वो दिल ही क्या जो तेरे मिलने की दुआ न करे उनकी एक मशहूर प्रस्तुति थी।
उनके करीबी मित्र कलाकारों में उस्ताद बिस्मिल्ला खां, उस्ताद रईस खान व उस्ताद सुल्तान खान थे।